VASANT PANCHAMI वसंत पंचमी 2020 भारत का वसंत, प्रकृति का महोत्सव पर्व

VASANT PANCHAMI


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Vasant Panchami, or Vasant Panchami, is a popular festival in North India that heralds the arrival of the spring season. Vasant Panchami 2020 date is January 30. ‘Basant’ or ‘Vasant’ means spring and ‘Panchami’ is the fifth day after Amavasi in Magh month when it is celebrated Saraswathi Pooja is performed in North and Eastern parts of India on the day. Yellow color, which symbolizes prosperity and love, is given importance on the day. Vasant Panchami festival is celebrated mainly in North India. In the Bhagavad Gita, Krishna says that ‘Vasant’ is one of his forms. Basant Panjami is purely a festival of nature and there is no major scriptural story associated with it as is the case of most Hindu festivals.

वसंत पंचमी 

पूरी दुनिया में सबसे अलग है भारत का वसंत, प्रकृति का महोत्सव है यह पर्व

वसंत तो सारे विश्व में आता है पर भारत का वसंत कुछ विशेष है। भारत में वसंत केवल फागुन में आता है और फागुन केवल भारत में ही आता है। गोकुल और बरसाने में फागुन का फाग, अयोध्या में गुलाल और अबीर के उमड़ते बादल, खेतों में दूर-दूर तक लहलहाते सरसों के पीले-पीले फूल, केसरिया पुष्पों से लदे टेसू की झाड़ियां, होली की उमंग भरी मस्ती, जवां दिलों को होले-होले गुदगुदाती फागुन की मस्त बयार, भारत और केवल भारत में ही बहती है। 
वसंत पंचमी उत्सव और महत्व 
माघ शुक्ल पंचमी को “वसंत पंचमी” उत्सव मनाया जाता है। इसे “श्री पंचमी”, ऋषि पंचमी, मदनोत्सव, वागीश्वरी जयंती और “सरस्वती पूजा उत्सव” भी कहा जाता है। इस दिन से वसंत ऋतु प्रारंभ होती है और होली उत्सव की शुरुआत होती है।

वसंत पंचमी के दिन ही होलिका दहन स्थान का पूजन किया जाता है और होली में जलाने के लिए लकड़ी और गोबर के कंडे आदि एकत्र करना शुरूकरते हैं। इस दिन से होली तक 40 दिन फाग गायन यानी होली के गीत गाए जाते हैं। होली के इन गीतों में मादकता, एन्द्रिकता, मस्ती, और उल्लास की पराकाष्ठा होती है और कभी-कभी तो समाज व पारिवारिक संबंधों की अनेक वर्जनाएं तक टूट जाती हैं।   
भारत की छः ऋतुओं में वसंत ऋतु विशेष है। इसे ऋतुराज या मधुमास भी कहते हैं। “वसंत पंचमी” प्रकृति के अद्भुत सौन्दर्य, श्रृंगार और संगीत की मनमोहक ऋतु यानी ऋतुराज के आगमन की सन्देश वाहक है। वसंत पंचमी के दिन से शरद ऋतु की विदाई के साथ पेड़-पौधों और प्राणियों में नवजीवन का संचार होने लगता है। प्रकृति नवयौवना की भांति श्रृंगार करके इठलाने लगती है।

पेड़ों पर नई कोपलें, रंग-बिरंगे फूलों से भरी बागों की क्यारियों से निकलती भीनी सुगंध, पक्षियों के कलरव और पुष्पों पर  भंवरों की गुंजार से वातावरण में मादकता छाने लगती है। कोयलें कूक-कूक के बावरी होने लगती हैं। 

वसंत ऋतु में श्रृंगार रस की प्रधानता है और रति इसका स्थायी भाव है, इसीलिए वसंत के गीतों में छलकती है मादकता, यौवन की मस्ती और प्रेम का माधुर्य। भगवान् श्री कृष्ण वसंत पंचमी उत्सव के अधि-देवता हैं अतः ब्रज में यह उत्सव विशेष उल्लास और बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है। सभी मंदिरों में उत्सव और भगवान् के विशेष श्रृंगार होते हैं।

वृन्दावन के श्री बांकेबिहारी और शाह जी के मंदिरों के वसंती कक्ष खुलते हैं। वसंती भोग लगाए जाते है और वसंत राग गाए जाते हैं महिलाएं और बच्चे वसंती-पीले वस्त्र पहनते हैं। वैसे भारतीय इतिहास में वसंती चोला त्याग और शौर्य का भी प्रतीक माना जाता है जो राजपूती जौहर के अकल्पनीय बलिदानों की स्मृतियों को मानस पटल पर उकेर देता है। 

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